सोमवार, 10 जून 2019

मानव का दैनिक धर्म

      नमस्कार मित्रों

आज मेरे दिल मे एक विचार उतपन्न हुआ कि क्यो न मैं और सम्पूर्ण मानव जाति अपने इस जीवन का मोल क्या हैं उसको समझे, मैं सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार समझता हूं जैसा कि मेरे संस्कृति ने मुझे सिखाया है कि हमे वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को लेकर प्रत्येक जीवो के साथ व्यवहार करना चाहिए,धन्य है मेरे देश की संस्कृति को और मेरा लाख सौभाग्य की इस पवित्र धरा पर मेरा जन्म हुआ ।यहाँ हर पल खुशिया और त्यौहार है आदिकाल से यहाँ उत्सव का मेला रहा है  ,लेकिल वर्तमान युग मे हम अपनी पहचान और धरोहर को खोते जा रहे हैं इसी के सम्बंध में मै अपना विचार रखने जा रहा हूं ये मेरा पहला ब्लॉग है मेरे शब्दो की गलतियों पर ध्यान न देकर मेरे भावात्मक अर्थ को समझने की कृपा करेंगे ,,

      आगे मूल विषय मे प्रवेश करेंगे
                          आभार
              

दैनिक धर्म  -  मनुष्य का दैनिक धर्म क्या है ?
क्या वह इस धर्म का पालन करता है या ऐसे ही अपनी रोज की आवश्यकता की पूर्ति हेतु अपनी जीवन का दिन काटता हुआ जीवन व्यतीत करता चला जाता  है  आइये हम इसी संदर्भ में चर्चा करें ।
मनुष्य का जन्म पृथ्वी पर एक वरदान से कम नही है एक ओर जीवन की कठनाइयां तथा दूसरी ओर प्रकृति (शास्त्र) सम्मत धर्म ,इन दोनों का सामना करते हुए या पालन करते हुए उसे अपनी जिंदगी गुजारनी होती है ,
जन्म से लेकर जीवन पर्यन्त वह प्रकृति से जुड़ा हुआ होता है ,तथा प्रकृति के द्वारा प्रदान किये माहौल के अनुसार ही उनकी दिनचर्या  व्यतीत होता है प्रकृति से अलग रहकर जी पाना सम्भव ही नही है ।
जारी है ...